Friday, June 5, 2009

गुरु महाराज जी

महापुरुष अपने जन्म से नहीं वर्ण अपने कर्म से जाने जाते हैं। गुरु महाराज जी ने अपना जीवन यद्यपि गृहस्थ के रूप में आरम्भ किया था परन्तु अपनी शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत जब अपने घर वापस आए तब उन्होंने दुर्गा पाठ शुरू किया इस पर गुरु महाराज जी के पिता श्री ने पुछा संसार की कोई वास्तु प्राप्त करने की इच्छा से इस पाठ को शुरू किया है तो उन्होंने जवाब दिया कि नहीं, तब पिता श्री ने कहा कि फिर अपने कल्याण हेतु ब्रह्म उपासना करो तब गुरु महाराज जी ने श्रीमद् भगवद गीता का पाठ आरम्भ किया। यह साक्षात् ब्रहम विद्या है जो परमगति को दिलाने वाला है। श्री भगवन ने इसकीपुष्टि अध्याय १८ के श्लोक ७० में की है।

गुरु महाराज जी ने शास्त्रों तथा उपनिषदों में जो ब्रह्म विद्या को पढ़ा था उसे प्रत्यक्ष दिखने वाले महापुरुष की खोज में काफी दिनों तक भ्रमण करते रहे। काफी दिनों पश्चात् योगेश्वर भगवन श्री कृष्ण इस भगवद्गीता के पाठ से प्रसन्ना होकर बेसुधी की अवस्था में आए और परमहंस श्री श्री १००८ स्वामी स्वरूपनान्दा जी महाराज के पास ब्रहाम्विद्य का उपदेश प्राप्त करने का निर्देश दिया।

प्रातः काल ही गुरु महाराज जी चल, श्री गुरु महाराज जी के दरबार में पहुंचे उस समय सत्संग चल रहा था उसी में जा कर बैठ गए। तत्पश्चात गृहस्थियों के चले जाने के बाद सन्यासियों की समीक्षा करते समय भी इनके बैठे रहने पर सन्यासियों ने आपत्ति की तब श्री गुरु महाराज जी ने कहा कई वर्षों से ये सदगुरू की खोज में लगे हुए थे। इन्हे आज यहाँ का पता बताये जाने पर आए हैं। फिर उनकी जेब में रखे सातों प्रशनों का उत्तर बिना पूछे दे दिया तब उनके शिष्य बन कर अखंड साधना की तथा १९६४ से १९८६ तक सन्यासी रह कर तत्त्वज्ञान का उपदेश देते हुए सदगुरु की सेवा में संलग्न रहे। यह ज्ञान पुस्तकों से प्राप्त न हो कर तत्वदर्शी महापुरुषों से प्राप्त होता है इसलिए गुरु परम्परा में गुरु महाराज जी का चित्र दिया जा रहा है जिनकी कृपा का यह प्रसाद है।


परमपूज्य गुरु महाराज जी

श्री श्री १००८ परमहंस स्वामी रामानंद सत्यार्थी जी महाराज



( उपरोक्त अंश गुरु श्री सतविवेक जी महाराज की 'गीता की मीमांसा' नामक पुस्तक से लिया गया है।)