गुरु महाराज जी को इस ब्रह्मविद्या का उपदेश करने की सेवा के लिए उन्हें यह आशीर्वाद दिया था कि "पंडित जी आपके शिष्य ही नहीं वरन आपके कुत्तों को भी रोटी कपड़े की कमी नहीं रहेगी। संतमत में धन का संचय वर्जित है परन्तु श्रद्धालु भक्तों के समस्त कार्य प्रकृति स्वयं करेगी। "
यद्यपि वाणी उनकी महिमा तथा लीलाओं का वर्णन करने में समर्थ नहीं है फिर भी श्रद्धालुओं तथा जिज्ञासुओं के मार्गदर्शन हेतु जो महापुरुषों से सुना तथा पढ़ा वही प्रस्तुत कर रहा हूँ।
इस ब्रहमविद्या के साथ-साथ भक्तों के सांसारिक कल्याण को करने हेतु श्री लक्ष्मी जी सदैव उनकी सेवा में उपस्थित रहती थी। सदैव अखंड लंगर चलने के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनके दरबार की तलाशी भी ली तथा सी. आई. डी. जाचे भी की परन्तु जाँच को करने वाले पुरूष अंततः उनके शिष्य बन गए।
श्री गुरु महाराज जी अब भी परोक्ष रूप में अपनी समाधी पर ही विराजमान रहते हैं तथा भक्तों के हृदय की पवित्रता के अनुसार उनका कल्याण सदैव करते रहते हैं तथा उनके अंतःकरण में विराजमान हो कर उनका परम कल्याण भी कर देते हैं।
मेरे सदगुरुदेव ने जिस तत्वदर्शी महापुरुष से यह ज्ञान प्राप्त करके तत्वदर्शी बने उन सर्व्यव्यापक, सर्वज्ञ, सर्व शक्तिमान परम सदगुरू का चित्र भी दिया जा रहा है जो इस परम्परा की दूसरी बादशाही कहलाती है।
यद्यपि वाणी उनकी महिमा तथा लीलाओं का वर्णन करने में समर्थ नहीं है फिर भी श्रद्धालुओं तथा जिज्ञासुओं के मार्गदर्शन हेतु जो महापुरुषों से सुना तथा पढ़ा वही प्रस्तुत कर रहा हूँ।
इस ब्रहमविद्या के साथ-साथ भक्तों के सांसारिक कल्याण को करने हेतु श्री लक्ष्मी जी सदैव उनकी सेवा में उपस्थित रहती थी। सदैव अखंड लंगर चलने के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनके दरबार की तलाशी भी ली तथा सी. आई. डी. जाचे भी की परन्तु जाँच को करने वाले पुरूष अंततः उनके शिष्य बन गए।
श्री गुरु महाराज जी अब भी परोक्ष रूप में अपनी समाधी पर ही विराजमान रहते हैं तथा भक्तों के हृदय की पवित्रता के अनुसार उनका कल्याण सदैव करते रहते हैं तथा उनके अंतःकरण में विराजमान हो कर उनका परम कल्याण भी कर देते हैं।
मेरे सदगुरुदेव ने जिस तत्वदर्शी महापुरुष से यह ज्ञान प्राप्त करके तत्वदर्शी बने उन सर्व्यव्यापक, सर्वज्ञ, सर्व शक्तिमान परम सदगुरू का चित्र भी दिया जा रहा है जो इस परम्परा की दूसरी बादशाही कहलाती है।
संतों की नगली श्री गुरु मन्दिर नंगले आजड़ सकौती जिला मेरठ में विराजमान
श्री नगली निवासी भगवान
श्री श्री १००८ परमहंस स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज परिव्राजका चर्या
( उपरोक्त अंश गुरु श्री सतविवेक जी महाराज की 'गीता की मीमांसा' नामक पुस्तक से लिया गया है।)