Friday, June 5, 2009

दादा गुरु जी महाराज

परम वैरागी, व्यावहारिक वेदान्त ज्ञान के अधिष्ठाता तथा वेद वेदांग, शास्त्र उपनिषद के मर्मज्ञ एवं ब्रहाम्विद्या को नया स्वरुप प्रदान करने परमहंस दयाल जी महाराज ने अधिकतर अपने जीवन काल का समय जयपुर में महाराजा रामसिंह जी के कोतवाल श्री रामचंद्र जी की कोठी पर रहते हुए इस ब्रहम विद्या की दिव्य ज्योति को प्रकाशित किया। अपने जीवन काल में आपने जो सत्संग उपदेश दिए उन्हें अपने जीवनकाल में ही प्रकाशित करने से मना कर दिया क्योंकि संत को उसकी महिमा ही हानि पहुँचाती है।

आप महारानी विक्टोरिया के शाही फ़कीर थे इसलिए उन्हें शिकागो सम्मलेन का निमंत्रण आया था उसी पर स्वामी विवेकानंद जी उनके प्रतिनिधि के रूप में शिकागो सम्मलेन में भाग लेने गए थे। इसकी व्यवस्था महाराजा खेचरी ने की थी जो परमहंस दयाल जी महाराज के भक्त थे। स्वामी विवेकानंद जी ने उस समय बाबा जी के नाम पर दो अद्वैत आश्रम जिसे बाबा जी ने बाद में मन कर दिया और कहा की अपने गुरु के नाम पर करो। तब आर के मिशन की की स्थापना हुई। भारत में दो आश्रम पिथौरागड़ तथा अद्वैत आश्रम कलकत्ता आज भी उसी रूप में विद्यमान हैं।

जीवन का अंधिकाश समय जयपुर में गुजारने के पश्चात् आप सीमाप्रांत के जिला बिन्नू के गाँव टेरी गए जहाँ पर इनके सत्संग में श्री गुरु महाराज अपनी बाल्यावस्था में अपनी माता जी के साथ पधारे तो आपने सभी उपस्थित समुदाय को उनके स्वागत के लिए यह कह कर खड़ा कर दिया की परमहंस जी पधार रहे हैं उनका स्वागत करो। इसके पश्चात श्री गुरु महाराज जी को अपनी शरण में ले कर नगला पड़ी आगरा में बिठाया तथा निराहार रखकर बारह वर्ष की अखंड समाधी अवस्था प्रदान कर के उन्हें पूर्ण कर दिया, फिर अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकारी नियुक्त करके जनकल्याण हेतु तैयार कर दिया।

मेरी इस गुरु परम्परा में अदि सदगुरुदेव जिनकी कृपा का प्रसाद हमारी दूसरी बादशाही को प्राप्त हुआ जिससे वे पूर्ण ब्रह्मपद को प्राप्त हुए। स्वामी विवेकानंद जी ने भी इनकी कृपा का प्रसाद पाया और इनके ही दिए हुए ज्ञान का प्रचार कर विदेशों तक में प्रसिद्ध पाई।

आदि गुरुदेव परमहंस दयाल जी महाराज

श्री श्री १००८ परमहंस अद्वैतानान्दा जी महाराज



( उपरोक्त अंश गुरु श्री सतविवेक जी महाराज की 'गीता की मीमांसा' नामक पुस्तक से लिया गया है।)